Tuesday, 6 December 2011

MAUN VRAT

तुम कहते हो कि मौन हूँ मैं ,
मैं सोचता हूँ कि कौन हूँ मैं 
इस भीड़ भरी अंधड़ दुनिया में 
ढूंढता साथी ,कौन हूँ मैं .
इन होश वालों के सफ़र में बेहोश ट्रावेलर कौन हूँ मैं,

बेहोश ट्रावेलर कौन हूँ मैं 
जिन्दगी हमसाया है ,गर मौत ही आये नहीं 
कबतलक छुपते रहोगे कह दो अब कि कौन हूँ मैं .
लोग कसते तंज़ हम पर तो बताओ क्या करें 
चाहते हैं मौन आला इसलिए तो मौन हूँ मैं.
टूटेगी जब ये सर्द चुप्पी धड़केगा जहने वजूद 
तब बताएँगे तुम्हे शतिर कि इन्सान कि कौम हूँ मैं 
इसलिए ही मौन हूँ मैं .
इन्सान के लहू को जो करते हैं चिकेन फ्राइ पसीने कि श्रमबून्द में चेतना सार्वभौम हूँ मैं .
फड़फअड़ाती,कुलबुलाती दास्ताँ गुमनाम की
कर सको अहसास तुम भी इसलिए ही मौन हूँ मैं .
सांच से भटकोगे तो बस आंच से बच पाओगे 
पर दहकते अंगार के गोलों में गुम हो जाओगे.
अब तकल्लुफ छोड़ दो बस करो दीदार सच का 
भूल जाओ मेरी हस्ती गर अभी भी मौन हूँ मैं .                       
                                                             
                                                                आवारा 
                                                                 २४-४-२०११